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Mp के ज्योतिरादित्य सिंह के निशाने पर राहुल गाँधी की नानी का देश इटली

विजेता के पास सदैव एक नई योजना होती है वही हारने वाले के पास सदैव एक नया बहाना।

उक्त बात को चरितार्थ किया है ठेठ आदिवासी जिले धार की बदनावर तहसील के एक छोटे से गांव कोद के शूटर बालक जो ज्योतिरादित्य सिंह सिसोदिया ने। इस बालक का चयन भारतीय जूनियर टीम के उन पांच खिलाड़ियों में नेशनल ट्रायल्स में मेरिट के आधार पर हुआ है जो की 9 से 16 जुलाई तक इटली के पोरपेट्रो में आईएसएसएफ जूनियर वर्ल्ड कप शॉटगन स्किट में भाग लेने जा रहे हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंह इस वर्ल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे ,उनके साथ के कुल पांच शूटरों में से तीन शूटर पंजाब के तथा एक साउथ का है तथा वह अकेले ही मध्य प्रदेश के शूटर हैं ज्योतिरादित्य सिंह का खेलों का या राइफल शूटिंग का कोई भी बैकग्राउंड नहीं है उन्होंने इस खेल की शुरुआत 2014 में कक्षा सिक्स्थ से अपने गांव गोद में अपने घर के बाड़े से की थी जहां उनके पिता ने एक जुगाड़ करके शुटिंग रेंज बना दी थी। उनके प्रारंभिक शिक्षक तथा कोच भी उनके पिता श्री बृजेश सिंह सिसोदिया ही थे। ज्योतिरादित्य के साथ ही उनके काका की बालिकाएं कुमारी श्रेष्ठा तथा कु मोहिका सिसोदिया भी राइफल शूटिंग करती हैं वह वह भी नेशनल लेवल की शूटर हैं। उन्होंने कक्षा 6 से 12वीं तक एसजीएफआई फिर वीर राइफल शूंटिंग क्लब इंदौर से, तत्पश्चात ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी गेम्स, खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स आदि में भी सहभागिता की तथा इन विभिन्न प्रतियोगीताओ में ब्रांच, सिल्वर तथा गोल्ड मेडल प्राप्त किए हैं। अभी वर्तमान में 2019 से मध्य प्रदेश शूंटिंग एकैडमी भोपाल की ओर से खेलते हुए ज्योति रादित्य सिंह ने विभिन्न मेडल जीतते हुए नेशनल ट्रायल्स से मेरिट के आधार पर जूनियर वर्ल्ड कप इटली के लिए भारतीय टीम में स्थान बनाया है

वर्ल्ड कप में भाग लेने वाले पांच खिलाड़ियों में से तीन खिलाड़ियों का पूरा खर्च एनआरएआई उठाना है तथा दो खिलाड़ियों का खर्च हुए वह स्वयं ही वहां करते हैं या संबंधित राज्य सरकार वहन करती है। यहां पर भारत का वर्ल्ड कप में प्रतिनिधित्व कर रहे तथा भारतीय शूटिंग टीम के सदस्य शूटर ज्योतिरादित्य सिंह सिसोदिया अपना खर्च स्वयं ही वहां कर रहे हैं जो कि लगभग साढे तीन- चार लाख रुपये बैठेगा ।यह बात खेलों को बढ़ावा देने की मध्य प्रदेश शासन तथा भारत सरकार की नीति पर भी एक प्रश्न चिन्ह लगाती है, वाकई में खेल पढ़ाई से ज्यादा महंगे हो गए हैं ऐसे में कौन मध्यमवर्गीय परिवार इस खर्च को वहन करने का सामर्थ्य या इस बारे में सोच सकता है।

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