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सामायिक में समभाव रखना चाहिए

बड़ों के चरण स्पर्श करना संस्कृति व संस्कारों का प्रतीक

सामायिक करने से सावद्य योग से निवृत्ति होती है

  • तपस्वी श्री हेमंतमुनिजी ने श्री वर्धमान स्थानक भवन बखतगढ़ में धर्मसभा में कहा

बदनावर। नगर की पुण्यवानी एवं संघ का सौभाग्य होता है तब कहीं जाकर संयमी आत्माओं का सानिध्य एवं जिनवाणी श्रवण करने का सुनहरा अवसर मिलता है। इसी के अंतर्गत बखतगढ़ में जिनशासन गौरव आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती रोचकवक्ताश्री संदीपमुनिजी, तपस्वी श्री हेमंतमुनिजी, श्री अभयमुनिजी, श्री जयंतमुनिजी, श्री सुयशमुनिजी ठाणा 5 का बखतगढ़ संघ को सुनहरा अवसर मिला है। इसके चलते प्रतिदिन श्रावक श्राविकाएं धर्म आराधना आदि का अच्छा लाभ ले रहे है।

सामायिक में समभाव रखना चाहिए

बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन में धर्मसभा में तपस्वी श्री हेमंतमुनिजी ने कहा कि सामायिक करना जीवन में हितकारी है। सामायिक करने से सावद्य योग से निवृत्ति होती है। अनुकूल या प्रतिकूल कैसी भी परिस्थिति होने पर सामायिक में समभाव रखना चाहिए। सामायिक करना अलग बात है, लेकिन सामायिक जीवन में आना महत्वपूर्ण बात है। इसलिए समभाव के साथ शुद्ध सामायिक होना चाहिए। तपस्वीश्री ने आगे कहा कि चार प्रकार के मनुष्य बताए गए हैं, उसमें पहले प्रकार का मनुष्य स्वयं पर उपकार करता और दूसरों पर उपकार नहीं करता, दूसरा स्वयं पर उपकार नहीं करता व दूसरों पर उपकार करता, तीसरा स्वयं पर उपकार करता और दूसरे पर भी उपकार करता और चौथे प्रकार मनुष्य स्वयं पर उपकार नहीं करता व दूसरों पर भी उपकार नहीं करता।

बड़ों के चरण स्पर्श करना संस्कृति व संस्कारों का प्रतीक है

तपस्वी श्री अभयमुनिजी ने कहा कि साधु, साधक व संसारी सभी को क्रोध, मान, माया, लोभ पर नियंत्रण करना चाहिए। इन पर नियंत्रण करेंगे तभी हमारी साधना सफल होगी। माता-पिता व बड़ों को नियमित चरण स्पर्श करना संस्कृति एवं संस्कारों का प्रतीक है। बच्चों को बचपन से ही ऐसे ही संस्कार देना चाहिए ताकि बच्चे संस्कारवान रहे। माता-पिता को नमस्कार करने से शुभ भाव अंदर प्रवेश होते हैं। जो बड़ों का सम्मान करता है, आशीर्वाद लेता है वह सबसे बड़ा व्यक्ति होता है। चरणों में वंदन करने से चरणामृत प्राप्त होता है। माता-पिता महाउपकारी होते है। सब कुछ न्योछावर करने के बाद भी हम माता-पिता के उपकारों से ऊऋणी नहीं हो सकते। मुनिश्री ने आगे कहा कि माता-पिता का उपकार एवं गुरु की कृपा मानने वाला अहंकार से दूर रहता है। ज्ञान दान दाता, सद्गुरु बड़े उपकारी होते हैं। वह अहिंसा के पालन कर्ता एवं परिग्रह के त्यागी होते हैं। जन्मदाता, ज्ञान दाता, जीवन दाता – जीविका दाता ये तीन महान उपकारदाताओं का आगन में उल्लेख आया है।

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