पुण्यवानी आत्मा राग से वैराग्य की ओर ले जाती है
- तपस्वी श्री अभयमुनिजी ने बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन में धर्मसभा में कहा
बखतगढ़/ दिलीप दरडा
पाप कर्म नहीं करना ही परम मंगल है। आत्मा के लिए परम मंगल पाप क्रिया का त्याग करना है। जीव जैसे-जैसे पाप का त्याग करता है, वैसे-वैसे मंगल होता जाता है। मन, वचन, काया से कर्म बंधते है। इसलिए मन, वचन व काया पर विशेष नियंत्रण की आवश्यकता है। ये प्रेरणदायी उदगार आचार्य श्री उमेशमुनिजी के शिष्य प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी के आज्ञानुवार्ती रोचकवक्ता श्री संदीपमुनिजी के सानिध्य में तपस्वी संत श्री अभयमुनिजी ने श्री वर्धमान स्थानक भवन बखतगढ़ में धर्मसभा में व्यक्त किए।
श्रद्धा को मजबूत करने से मोक्ष मिलता है
तपस्वीश्री ने आगे कहा कि श्रद्धा को लगातार मजबूत करेंगे तो मोक्ष निश्चित मिलेगा। हमें कषायों की मंदता करना है। क्रोध, मान, माया, लोभ जीव को इन्हें ही जितना है। महापुरुषों की तरह हमारा भी यही लक्ष्य होना चाहिए कि हम भी एकाभवतारी बने। पुण्यवानी आत्मा राग से वैराग्य की ओर ले जाती है। वास्तव में संत तो वही है जो अमंगल से मंगल की ओर ले जाए। इसीलिए कहा गया है कि महापुरुषों की वाणी बहुत ही मंगलमय होती है।
मन, वचन, काया को वश में करे
श्री जयंतमुनिजी ने कहा कि आज के युग में सहनशीलता रखना बहुत कठिन कार्य है। सहनशीलता रखने से परिवार, समाज में एकता रहती है। मन, वचन, काया को वश में करके जीव मधुर वचन बोलेगा तो उसका आत्म कल्याण निश्चित होगा। वचन में मधुरता नहीं है तो सामने वाले व्यक्ति को वह कठोर भाषा पीड़ाकारी लगती है। इससे कर्मों का भी बंध होता है। इसलिए प्रत्येक जीव को अपने वचनों के माध्यम से अपनी भाषा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
साध्वीश्री ने मधुर स्तवन प्रस्तुत किया
पुण्यपुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी की शिष्या साध्वी श्री किरणबाला जी ने ” म्हारा सिर पे गुरु सा. रो हाथ रहे जी, हीरो पायो उमेश गुरु रा नाम रो जी” मधुर स्तवन प्रस्तुत किया। जिससे सूचना व्याख्यान हॉल मधुर स्तवन से गुंजायमान हो गया।
16 चारित्र आत्माओं का मिल रहा है सानिध्य
आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती रोचकवक्ताश्री संदीपमुनिजी, तपस्वी श्री हेमंतमुनिजी, श्री अभयमुनिजी, श्री जयंतमुनिजी, श्री सुयशमुनिजी ठाणा 5 एवं साध्वीश्री श्री पुण्यशीलाजी, श्री किरणबालाजी, श्री शीतलप्रभाजी आदि ठाणा 11 के सानिध्य में धर्म आराधना का बखतगढ़ में लाभ मिल रहा है। अर्थात चतुर्विद संघ का लाभ मिल रहा है। धर्मसभा में उपवास के प्रत्याख्यान हुए। धर्मसभा में संदीपमुनिजी ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को नियमित विभिन्न त्याग, प्रत्याख्यान करवाए। व्याख्यान के बाद सुजानमल वरमेचा की ओर से प्रभावना वितरित की गई।
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